सीबीगंज (बरेली)। चकरोड पर अंतिम संस्कार की घटना को देखकर सरकार के बड़े बड़े दावों की पोल खुल गई है. बरेली के शेरगढ़ ब्लॉक के नगरिया खुर्द गांव की कहानी भी कुछ ऐसी ही नजर आती है। यहां गांव के लोग इस कदर बेबस हैं कि अगर उनके घर के किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसे अंतिम संस्कार करने के लिए मुक्तिधाम भी नसीब नहीं होता। मजबूरन व्यक्ति के पार्थिव शरीर को अपने खेत या चकरोड पर ही रखकर अंतिम संस्कार करना होता है। हालांकि प्रदेश में कई ऐसी सरकारें आई जो सिर्फ विकास के ढोल पीट कर चली गईं, और उनके बाद जो सरकार आई उसने भी विकास का ढोल पीटना शुरू कर दिया।
पिछली सरकारों को असंवेदनशील और खुद को अति संवेदनशील बताने वाली यह सरकारें आखिर दिखाना क्या चाहती हैं। समझ से परे ही नजर आता है। मूलभूत सुविधाओं के लिए शासन प्रशासन का मुंह ताक रहे शेरगढ़ ब्लॉक के नगरिया खुर्द गांव में हैरान कर देने वाले इस मामले ने सिस्टम के सारे दावों की पोल खोल कर रख दी है।
सीबीगंज क्षेत्र के भी दो गांव चन्दपुर काजियान, चन्दपुर जोगियान ऐसे हैं जहां पर ग्राम सभा की जमीन होने के बाबजूद शमशान घाट नहीं है। यहां पर भी लोग चकरोड या अपने निजी खेत में ही अपने परिजनों के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करते देखे जाते हैं। इन ग्राम सभा की जमीनों पर समुदाय विशेष का कब्जा बताया जाता है. जिसको आज तक कब्जा मुक्त नहीं कराया जा सका है। इन गांवों के हालात आज भी जस के तस हैं।
यहां अंतिम यात्रा भी मजबूरियां भरी है। भले ही योगी सरकार प्रदेश में तमाम मूलभूत सुविधाएं होने का दावा करती हों लेकिन सच्चाई तो ये है कि यहां मरने के बाद शव को जलाने के लिए श्मशान घाट भी नहीं है। खुले आसमान के नीचे चकरोड पर दाह संस्कार करते दिख रहे ये लोग किसी दुर्गम क्षेत्र के नहीं वरन बरेली के शेरगढ़ ब्लॉक के ग्राम नगरिया खुर्द के है। यह ग्राम कहने में तो एक अच्छे गांव की श्रेणी में आता है, लेकिन धरातल पर कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। इस गांव में ग्राम सभा की जमीन उपलब्ध है लेकिन उस पर एक समुदाय के व्यक्ति का सालों से कब्जा है और ग्राम प्रधान भी उसी समुदाय से आते हैं. लोगों का कहना है कि ग्राम प्रधान और कब्जेदार एक ही समुदाय के होने के कारण ग्राम सभा की जमीन कब्जा मुक्त नहीं हो पा रही है और न ही गाँव में शमशान घाट बन पा रहा है इसलिए मजबूरी बस चकरोड पर ही अंतिम संस्कार किए जाते हैं।